तलब
लखनऊ छोटी लाइन के रेलवे स्टेशन से गोरखपुर के लिए उस दिन सर्द रात्रि में ट्रेन प्रस्थान के लिए प्लेटफॉर्म पर तैयार थी । मैं अपनी बर्थ पर स्थान ग्रहण करने के पश्चात सिग्नल की स्थिति देख कर अपनी उत्सुकता शांत करने के लिए बोगी के दरवाजे के पास पहुंचा तभी ट्रेन सरकने लगी और मैंने देखा कि एक छुट भइये नेता जी ने मेरे सामने खड़े एक व्यक्ति को पकड़ कर धक्का देकर यह कहते हुए कि भाग यहां से , तेरे लिए यहां जगह नहीं है ट्रेन से बाहर कर दिया । वह व्यक्ति प्लेटफार्म पर गिर , लड़खड़ाते हुए अपने संतुलन को बनाकर उल्टे कदमों से पीछे पीछे की ओर ट्रेन के साथ साथ चलने लगा ।
ट्रेन सरकती जा रही थी और तभी उस व्यक्ति ने अपने कोट की बटने खोल कर उस कोट के पल्ले के विस्तार को एक हाथ से खोलकर अपने कोट के अंदर उसकी जेब में रखी एक शराब की बोतल को उन नेता जी को पछतावा दिलाने वाले लहजे में , उसे प्रदर्शित करते हुए कहा
‘ देख मेरे पास यह है अब मैं जा रहा हूं किसी दूसरे डिब्बे में । ‘
उस व्यक्ति के पास शराब की बोतल को देखकर नेता जी का रवैया नरम पड़ गया और वे उसे आग्रह पूर्वक अपने डिब्बे के अंदर बुलाने लगे । और बोले अच्छा आ जाओ , आ जाओ । कोशिश करते हैं । ट्रेन चलती जा रही थी और वह व्यक्ति भी उल्टे पांव साथ साथ चलता जा रहा था कि तभी नजदीक आने पर नेता जी ने उसे हाथ बढ़ाकर डिब्बे के अंदर खींच लिया ।अब तक ट्रेन ने और गति पकड़ ली थी
मैं भी अपनी अपनी बर्थ पर आकर बैठ गया । कुछ देर बाद जब मैं प्रसाधन कक्ष की ओर जा रहा था तो मैंने देखा कि वे नेता जी और वह शराब की बोतल वाला व्यक्ति संडास और दरवाजे के बीच स्थित जगह पर जमीन पर एक अखबार बिछाकर बोगी की दीवार से पीठ टिका कर आसपास बैठे थे । मैं उन्हें लांघ कर प्रसाधन कक्ष मैं घुस गया । कक्ष का इस्तेमाल कर जब मैं वापस लौट रहा था तो वो लोग बेचैनी से इधर उधर देखकर कुछ तलाश रहे थे । फिर उन्होंने मुझे भी रोककर पूछा की क्या मेरे पास कोई गिलास है ?
मैंने इसके लिए उन्हें मना कर दिया और वापस अपनी सीट पर आ गया । इसके बाद ट्रेन चलती रही और कब मुझे झपकी लग गई मुझे पता नहीं चला । मध्य रात्रि में मेरी नींद खुलने पर लघु शंका निवारण हेतु मैं पुनः प्रसाधन के लिए जब उन दोनों के पास से गुजरा तो मैंने पाया कि वे अपने बीच में फर्श पर कुछ चखना रखकर शराब को दो प्लास्टिक के गिलासों में आपस में बांटकर जाम पीने में तल्लीन थे ।
इस बार जब मैं उस भारतीय शैली के संडास कक्ष में गया और उसे बंद करने के पश्चात मेरा ध्यान पिछली बार उस कक्ष की खिड़की पर रखे उन दो , मात्र एकल उपयोग के लिए निर्मित ( Disposable ) प्लास्टिक के दो गिलासों , जो कि शायद किसी ने इस्तेमाल के पश्चात अन्य किसी पर परोपकार करने के उद्देश्य से शौच प्रक्षालन निमित्त उस संडास की खिड़की की मुंडेर पर इस्तेमाल कर छोड़ गया था वे दो डिस्पोजेबल गिलास अब वहां नहीं थे ।