@ तरीके @
डा o अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
@ तरीके @
मिरी आशिकी के तरीके कभी मजहबी न हये
मैं था अकेला आदमी जो कभी किसी के नबी न हुये ||
लोगों ने एक आसान सी राह चुनी प्यार की
आना न पाई खर्च किया बरकत मिली बहार सी ||
हम तो न हम हुये न हम नबा हुये पेच फिर भी लड़ गये
जो फना हुए, लोगो के फ़साद में ही जो उलझ गये ||
होली आई , चली गई और फिर से आई आती ही रही
सूखे सूखे रहे ताकते हम और सबको तो वो रही भिगोती ||
नैन मिले थे, जितनों से भी, प्यार हुये थे कितनों से ही
नैन मिले थे, जितनों से भी, प्यार हुये थे कितनों से ही ||
पर न हुये आबाद, हलकट से हम रहे झाकन्ते ,
खिड्की और दरवाजों से, घर का सूना सूना कोना ||
दीखे मुझको रहा चिड्ध्हाता सुनी सुनी यादों से
सुनी सुनी यादों से , सुनी सुनी यादों से , सुनी सुनी यादों से ||
तेरे मेरे सपन हो गये सपनों जैसे दफन हो गये
बाकें नैना कुम्ह्लाये फूलों से देखो देखो हवा हो गये ||
मिरी आशिकी के तरीके कभी मजहबी न हये
मैं था अकेला आदमी जो कभी किसी के नबी न हुये ||
लोगों ने एक आसान सी राह चुनी प्यार की
आना न पाई खर्च किया बरकत मिली बहार सी ||