तरही ग़ज़ल
रंजो अलम नसीब के कहते रहे सबसे।
मिलती हैं मगर राहतें उस एक ही रब से।।
आता है दोस्तों से लुत्फ़ ज़िन्दगी का अस्ल,
रोटी तो फ़क़त चाहिए जीने के सबब से।
हर रात अब तो हो गई पूनम की रात है,
हम चाँद के आग़ोश में आने लगे जबसे।
हिन्दू हों मुसलमान हों सिख हों कि ईसाई
है मुल्क में रौनक़ इन्हीं त्योहारो परब से
कैसा ये नया दौर ज़माने में आ गया,
है बज़्म पशेमान ख़रीदार-ए-लक़ब से।
बदनाम कर रहे हैं वही लोग अदब को,
“कमज़र्फ़ हैं जो जलते हैं इस्लाह-ए-अदब से।”
कैसे करें ‘असीम’ जी तारीफ़ की उम्मीद,
झड़ते नहीं हैं फूल हसदबाज़ के लब से।
✍🏻 शैलेन्द्र ‘असीम’
28 नवम्बर 2024 05:40 PM