तरही गजल
लबों पर कोई मुस्कुराहट नहीं है,
वो क्या दिल है जिसमें मुहब्बत नहीं है।
खुदी बेचकर ख़ुशनुमा हो गया वो,
उसे अब किसी से हिक़ारत नहीं है।
खुलेआम तुम हमसे नज़रें मिलाओ,
सिमटने की कोई जरूरत नहीं है।
कड़ाके की सर्दी सितम कातिलाना,
बदन में बची और ताक़त नहीं है।
सहज हर कदम पर फटेहाल रहता,
तनिक भी ख़ुशामद की आदत नहीं है।