तरस रहा हर काश्तकार
धरतीपुत्रों से कर रहे
जो सब आज फरेब
कल वो कुर्सी खोएंगे
ले डूबेंगे उनके ही ऐब
झूठे दावों से हरे हुए
कब खेत, खलिहान
पीड़ाओं से व्यथित हैं
समूचे देश के किसान
खाद और बीज महंगे हुए
खेती पे महंगाई की मार
उत्पादों के सही मूल्य को
तरस रहा हर काश्तकार
जब तक मजबूत न होंगे
देश के किसानों के हाथ
तब तक दुनिया में ऊंचा
नहीं होगा भारत का माथ