तरंग
ताल तरंग तरुवर उमंग
पवन सहित प्रसन्न दिखे हैं
सागर,सरिता और सरोवर
सभी वायु के संग मिले है
सरिता कहती सागर से
ताल तलैया खिल जाने दो
पावस की ऋतु है आयी
मुझे स्वयं मे मिल जाने दो ..१
प्रकृति ,सुकृति,आकृति नयनन मे
पर्वत-पर्वत झरने झम-झम
हिय सागर में हिलोर उठे
तरुवर वायु करें छम-छम
आनंदित मन भी अधीर है
हर शंका अब मिट जाने दो
ज्यों गंग तरंग उमंग दिखे
तब गंग मे अंग मिल जाने दो..२
सुर लय सुंदर कर्णश्रब्य को
ताल थाप मन को भाये
वाद्ययंत्रो की स्वर तरंगे
सुनते ही मन हर्षाये
ध्वनि धीरे-धीरे धैर्य धरे
तब लय कण्ठस्थ हो जाने दो
जब तूलिका रंगो से खेल रही हो
तब रंग मे तरंग मिल जाने दो ..३