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19 Oct 2018 · 1 min read

तम के पहरेदार

लघुकथा
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सुबह का कोई पाँच या सवा पाँच बजा होगा, मै मॉर्निंग वॉक के लिए नगर के बीचों बीच स्थित पार्क की तरफ बढ़ा जा रहा था… सड़क पर कोई नजर नही आ रहा था, मन में अनेक प्रश्न उठने लगे थे…. आखिर क्या हुआ, सब कुछ ठीक तो है..?

पार्क का गेट भी नहीं खुला था, व्याकुलता और बढ़ गयी इसलिए जल्दी से घर पहुंचा, तब तक अखबार भी आ चुका था, अखबार देख कर सारी स्थिति एक दम साफ हो गई थी कि शहर में इतना सन्नाटा क्यों है

अखबार का पहला पृष्ठ खून और इंसानी चीथडो से सना हुआ था, रात नगर में हुए बम विस्फोट की खबर व चित्र अनहोनी की कहानी विस्तार से बात रहे थे l

उग्रवादियों ने इस घटना की जिम्मेदारी ली थी. सरकार विपक्ष को जिम्मेदार मान रही थी ओर विपक्ष सरकार को.. एक उग्रवादी व कुछ संदिग्ध व्यक्ति पकड़े गये थे जिनसे पूंछ-ताछ चल रही थी,

टीवी पर इस मुद्दे पर उत्तेजक बहस में विद्वान खुलकर उग्रवादी व संदिग्धों के मानवाधिकारों की दुहाई दे रहे थे, समर्थन कर रहे थे…. किन्तु,,,,,, किन्तु ,,,,, हादसे में मारे गए लोगों से किसी को कोई सरोकार नहीं था….

◆◆◆ राघव दुबे

Language: Hindi
346 Views
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