तमाशा
तमाशा
अद्भुत होता है
परंतु
सत्य से परिपूर्ण
यह समारोह
सारी व्यस्तताओं के रहते भी
समय निकाल लेते हैं हम
रुचि अरुचि का न कोई भान होता
सहर्ष सभी
स्वीकार लेते हैं हम
नहीं रहता द्वेष
किसी से
स्नेह पाश सभी
विस्मृत करते हम
“मैं” हो जाता
शून्य
अपरिमित विस्तार हो जाते हैं हम
क्यों बनाते रहे दीवारें
हम
आंगनों के बीच
अहंकार की ओढ़ चादर
जीते रहे हम,
सोने सा जीवन
पानी सा बहा दिया
और
रेत लेकर बैठे रहे
सारी उम्र हम ,
तुम देखते रहे खूब
तमाशा अब तलक
अब लोग हैं तमाशाई
देखते हैं हम,
अपने ही हैं सारे आज
तुमको लेकर जा रहे
अपने साथ आज क्या
ले जा रहे हैं हम ।।