तमाम उम्र तितलियों से ज़ख्म खाया है ।
एक शायरी देखिए
वो तो पत्थर पे भी उन्वान ए शजर कर देगा
सुना है इश्क़ से उसने ये हुनर पाया है।।
अपने दामन में गुलाबों को जगह दूं कैसे।
तमाम उम्र तितलियों से ज़ख्म खाया है ।
मतला एक शेर देखिए
हमने ग़म की भी बिजलियां देखी।
तेरे उल्फत के दरम्यां देखी।
खौफ़ खाता हूं तब तो फूलों से
जबसे कातिल सी तितलियां देखी।
©®दीपक झा रुद्रा
दीपक झा “रुद्रा”