तमन्ना हमें न जन्नत की
कब किसी से यहाँ मुहब्बत की.
जब भी’ की आपने सियासत की.
जुल्म सहती रही सदा धरती,
आसमां ने कहाँ शहादत की
ताव दे मूँछ पर सभी बैठे,
कौन बातें करेगा उल्फत की.
फूल भी चुभ रहे उन्हें अब तो,
क्या हो’ तारीफ़ इस नजाकत की.
आदमी आदमी से जलता है,
कुछ कमी है यहाँ जहानत की
यूँ विखरता नहीं कोई रिश्ता,
है जरूरत जरा हिफाजत की,
माँ के’ चरणों की धूल मिल जाए,
फिर तमन्ना हमें न जन्नत की.