तमन्नाओं का तेरी अपने दिल को दर बनाता हूँ … शमशाद शाद की एक लाजवाब ग़ज़ल
तमन्नाओं का तेरी अपने दिल को दर बनाता हूँ
हसीं यादें सजा कर वस्ल का मंज़र बनाता हूँ
मुसव्विर हूँ तसव्वुर को बदलता हूँ हक़ीक़त में
जिसे देखा था ख़्वाबों में वही पैकर बनाता हूँ
जुदागाना तबीयत, मुनफ़रिद अंदाज़ है मेरा
मैं जो भी शय बनाता हूँ ज़रा हट कर बनाता हूँ
रक़ीबे फन ना मुझसे छीन ले जाए मिरा सब कुछ
“मैं काग़ज़ के सिपाही काट कर लश्कर बनाता हूँ”
नज़रअंदाज करता हूँ मैं छोटी छोटी बातों को
भूला कर कल की बातें आज को बेहतर बनाता हूँ
यही इक शुग़्ल तन्हाई में मुझको रास आता
तेरी सोचों को अपनी नींद का बिस्तर बनाता हूँ
ज़बाने मीर-ओ-ग़ालिब आज अपने घर में है बे-घर
मैं उर्दू के लिए हर एक दिल में घर बनाता हूँ
मुहब्बत मेरा मसलक है, कमाल-ए-ख़ुल्क़ से अपने
मिटा दे नफ़रतें ऐ ‘शाद’ वो जौहर बनाता हूँ
शमशाद शाद, नागपुर
9767820085