तब सुबह सुहानी आती है
निद्रा आलिंगन में रजनी
जब स्वप्न नगरिया को जाती ,
चुपके चुपके बिन आहट के
तब सुबह सुहानी बन आती ।
आकर अपने कोमल कर से
कर स्पर्श धरा , स्पंदित करती
तंद्रा दूर भगाकर तन की
नव उमंग जन – मन में भरती ।
मैंने दीप जलाया जग में
मधु कलरव में गाती रहती
प्रसार प्रकाश का तुम करना
उठो भोर है सबसे कहती ।
डॉ रीता सिंह
चन्दौसी (सम्भल)