तब मानूँगा फुर्सत है
मेरी खातिर फुर्सत पाओ तब मानूँगा फुर्सत है।
छूकर दिल को दिल बहलाओ तब मानूँगा फुर्सत है।।
फूल सरीखे हाँथों की उंगली की कोमल पोरों से
मेरे बालों को सहलाओ तब मानूँगा फुर्सत है।।
जैसे तैसे आनन फानन काम सभी निपटा डालो।
विद्युतछटा रूप की लेकर गम की घटा हटा डालो।
मनमोहक चितवन से मीठी लोरी जैसा कुछ गाओ
बिन बोले ही अपने दिल के राज सभी बतला डालो।
इतना अगर पास आ जाओ तब मानूँगा फुर्सत है।
छूकर दिल को दिल बहलाओ तब मानूँगा फुर्सत है।।
कितनी चिंताएँ सिर में हैं दिल में कितने खेद हैं।
गिनो बताओ जज्बातों के होते कितने भेद हैं।
कनपटियों के पास तीन सौ तेंतीस, सत्तर सीने में
बड़ी फिक्र के साथ बताओ कितने बाल सफेद हैं।
ऐसा क्रम फिर फिर दोहराओ तब मानूँगा फुर्सत है।
छूकर दिल को दिल बहलाओ तब मानूँगा फुर्सत है।।
संजय नारायण