“तब घर की याद आती है”
दिन तो कट जाता है स्कूल में
बच्चों को पढ़ने-पढ़ाने में
पर रात की तन्हाई काट खाती है ।
तब घर की याद आती है।
जब घर पर बात होती है
माँ जब पूछती है
बेटा कब आएगा
2 साल का बेटा तेरा
रोज तुझे याद करके सो जाता है
और पूछता है माँ से, पापा “कब आएंगे”
चुन्नू के पापा तो रोज स्कूल से
दोपहर को घर आ जाते हैं
पापा क्यों नहीं आते,
रोज़ झूठा दिलाशा देती
और अपने ऑंसू छुपाती है।
तब घर की याद आती है
पूछते हैं कर फोन को
बहन कब आऊंगी राखी बांधने भाई को
दो साल हुए सूनी कलाई को
फिर राखी पड़ गई इतवार को
फिर अगली बार बांधने का वादा किया जाता है
और राखी डांक से भेजी जाती है
तब घर की याद आती है
दो दिन लगते आने और दो जाने में
एक दिन मिलता छुट्टी मनाने में
एक छुट्टी चार C L खा जाती है
कभी जी भर कर बात भी न होती
दोस्तों रिस्तेदारो से मुलाक़ात भी न होती
आने की तैयारी होने लगती
बेटी मेरी रोने लगती है
कहती है पापा कल आए आज चल दिये
फिर खिलौने वह ठुकराती है
तब घर की याद आती है
हँसकर हम पढ़ाते है बच्चों को
पर अंदर से हताश रहते है
अपने परिवार माँ बापू ,भाई बहन बेटे बेटी ,बीवी के ख्यालों में
खोये खोये रहते हैं
जब दोस्तों की याद आती है
तब घर की याद आती है
जो काम कर रहे है पांच सौ कोस दूर
करेंगे वही अपने घर भी हुज़ूर
पूरे उत्साह पूरे जोश के साथ
हो जाए अगर तबादला हमारा
बने हम भी अपने परिवार का सहारा
दिल से यही सदा आती है
तब घर की याद आती है
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