तबाही की दहलीज पर खड़े हैं, मत पूछो ये मंजर क्या है।
तबाही की दहलीज पर खड़े हैं, मत पूछो ये मंजर क्या है।
बिखरी हुई ख्वाहिशें, और बिखरा हुआ ये घर क्या है।
हर गली में सन्नाटा, हर दिल में खामोशी,
जख्मों से भरा हुआ, फिर भी ये सफर क्या है।
बाहर से जरूर ठीक नजर आते हैं, सच पूछो मेरे अंदर क्या है।
सपनों की राख बची है, अरमानों का मंजर क्या है।
हर सांस बोझिल है, हर कदम भारी,
खुद से लड़ते हुए, ये जीवन का मंजर क्या है।
निकलते नहीं बूंद भर आंसू भी, मेरी आंखों से ज्यादा बंजर क्या है।
सूखी हुई जमीं पर, उम्मीदों का मंजर क्या है।
रोने की ताकत नहीं, हंसने का सहारा नहीं,
दिल के वीराने में, अब कोई मंज़र क्या है।
और टूटे हुए सपनों का दर्द इतना गहरा है, मत नापो ये समंदर क्या है।
हर लहर चीखती है, हर मौज सिसकती है।
दिल के जख्मों का हिसाब कौन देगा,
इस दर्द की गहराई, ये समंदर क्या है।