तबलची (हास्य-व्यंग्य)
तबलची
घर का खस्ताहाल
स्थिति बड़ी संगीन है।
घर के दौलत की देवी को
डंस गई नागिन है।
किसी के दिन में भी रंग
रातें भी होती रंगीन है।
हमारे तो,
आमद-ए-गम में बीतते दिन
रातें भी होती गमगीन है।
क्योंकि
प्रतिष्ठा की पिण्डली पर
कुंडली मार बैठा एक मिडिलची।
इसके नीचे के सभी तो
इसके ही है नकलची।
ग्रेजुएट की तो इज्जत कहाँ?
हम तो हुए कौड़ी के तीन है।
बड़े बेंग को भी पेंगे मार
आँख दिखता एक बेंगची।
चमचा की रौनक चारों ओर
देगचा के आँखों की भींगी कोर
आदमी के चमचा बन जाने से
परेशान नज़र आता आजकल
धातु का बना हर एक चमची।
हम तो चमची,नकलची
कुछ भी न बन पाएँ
आओ आज एकजुट हो जाएँ
फिर बनेंगे हम तबलची।
-©नवल किशोर सिंह