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8 Apr 2021 · 1 min read

तप कर कुंदन बनता रहा — गजल/ गीतिका

वे जले खूब जलते रहे , तपन सह मै तपता रहा।
आया निखार पल पल तप कर कुंदन बनता रहा।
गलता रहा सहता रहा उच्च ताप मन भीतर।
कष्ट तो गहरा हुआ, पर सहता रहा मैं सहता रहा ।।
करता भी क्या? डरता भी क्यूं,उस भीषण ज्वाला से।
थी पानी पहचान मुझे , मै निखरता रहा ।।
हो गया ख्वाब मेरा पूरा,था अभी तक जो अधूरा।
धर गली चौक शहर गांव में,अब मै बिकता रहा।।
यही मेरा जीवन,क्या आप भी चाहते हो ऐसा।
निखर कर “अनुनय” सबके लिए कहता रहा।।
राजेश व्यास अनुनय

2 Likes · 2 Comments · 351 Views
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