तप और त्याग
रिश्तों को निभाने के लिए बहुत कुछ हारना पड़ता है,
उसमें कोई खामोशियों को डर तो कई समझदारी समझ्ते है,
ये तो नज़र-नज़र का फ़र्क जो समझें वही समझ सकता है,
जिसनें अपनें रिश्तों को बरक़रार रखने को त्याग किया है।।
मुकेश पाटोदिया”सुर”
रिश्तों को निभाने के लिए बहुत कुछ हारना पड़ता है,
उसमें कोई खामोशियों को डर तो कई समझदारी समझ्ते है,
ये तो नज़र-नज़र का फ़र्क जो समझें वही समझ सकता है,
जिसनें अपनें रिश्तों को बरक़रार रखने को त्याग किया है।।
मुकेश पाटोदिया”सुर”