तपस्वी
वो तपस्वी था
वो त्यागी था
उसमे कोई राग नही
वो बैरागी था
एक धोती थी
एक अंगोछा था
एक थैला था
जिसमे लोटा था
पैरों में चप्पल नही
सिर पर टोपी नही
चलने को वाहन नही
वो तो एक पथिक था
चलते चलते थक गए
कदम वहीं रुक गए
देख शीतल छाया को
नेत्र वहीं मुंद गए
चेहरे पर मुस्कान लिए
फिर जल का पान किये
आगे को फिर बढ़ चले
आराध्य का ध्यान किये
मंजिल का पता नही
संगी साथी कोई नही
एकाकी जीवन जीना है
भविष्य की चिंता नही
भौतिक सुख त्याग दिए
सारे वस्त्र भी त्याग दिए
त्याग दिए सगे संबंधी
रिश्ते नाते सब त्याग दिए
ऐसा वो तपस्वी अपने ओज़ में
अपने आराध्य की खोज में
यहां से वहां भटक रहा
आ जाने के जोश में
वीर कुमार जैन
10 जुलाई 2021