तपती दुपहरी..
जेठ की इस
तपती दुपहरी में
हाल -बेहाल
पसीने से लथपथ
जब काम खत्म कर
वो निकली बाहर
घर जाने को
बडी़ गरमी थी
प्यास से गला
सूखा…….
घर पहुँचने की जल्दी थी
वहाँ बच्चे कर रहे थे
इंतजार उसका
सोचा ,चलो रिक्षा कर लूँ
फिर अचानक बच्चों की
आवाज कान में गूँजी..
“माँ ,आज लौटते में
तरबूज ले आना
गरमी बहुत है
मजे से खाएंगे”
और उसके कदम
बढ़ उठे उधर
जहाँ बैठे थे
तरबूज वाले
सोचा ,बच्चे कितने खुश होगें
मैं तो पैदल ही
पहुंच जाऊँगी …
पसीना पोंछ
मुस्कुराई …
तरबूज ले
चल दी घर की ओर ….माँँ जो थी ..।
. शुभा मेहता