तन है सबका मिट्टी
तन है सबका मिट्टी।
सृष्टि के निर्माण से खेल रहा आदमी।
अब कहां पाएगा हरा मैदान आदमी।
धूप ही धूप मिलेगी हर जगह, छाँव कहाँ?
कच्ची कलियाँ नोचकर बना हैवान आदमी।
निचोड़ी जा रही धरती आसमान भी,
एक बूंद के लिए होगा परेशान आदमी।
कोमल धरती फट गई एड़ियों की तरह,
कितना करेगा मलहमी आयुर्विज्ञान आदमी।
बहती गंगा में धूले जाएंगे सर से पाँव तलक,
फिर उसी में कैसे करेगा जलपान आदमी।
कहाँ बोयेंगे बीज, कैसे उगाएंगे अनाज,
जब धरती में नही रखेंगे जान आदमी।
यूँ ही कब तक ढहाते रहेंगे संसार को,
तन है सबका मिट्टी जरा इसे पहचान आदमी।
Rishikant Rao Shikhare
19/06/2019