तन मन मदहोश सा,ये कौनसी बयार है
तन मन मदहोश सा,ये कौनसी बयार है
एक अनजानी डगर पे,कुछ जाना सा खुमार है….
क्यों तडफ़ है सिने मेँ,दिल क्यों पशेमान है
बेचैन आहों में मगर,सुकुन तलबगार है…..
दिल के किसी कोने को,ये कौन सहला गया
नज़र न आएँ कोई भी,मदहोशी बेशुमार है….
सुने पडे मन आंगन में ,क्या फि़र बहार आएगी ?
महकाने मेरे वजु़द को,क्या रातराणी खिलखिलाएगी!…
यह बदलती वक्त की फि़जा,न जाने कहाँ बहा ले जाएगी
मगर अब यकिं है इतना कि,”सब्र के” साथ ये जिंदगी
फि़र से मुस्कुराएँगी…..फि़र से मुस्कुराएँगी…