तन्हा
तनहा सा हो गया मेरा कमरा अब
एक घडी टिक टिक करती थी ,
पर कल टूट कर चूर हो गयी ।
बहुत पहले कुछ बच्चों का शोर आता था …कमरें में
पर अब वो बच्चे सुना है डिजिटल हो गए …बस computer पर दिखते हैं ।
उनके खेलने की जगह पर गाड़ियां पार्क हैं ।
कुछ बुजुर्ग थे जो कभी कभी बैठे मिलते थे ,
मेरे कमरे की खिड़की के नीचे ।
अब सुना है कहीं किसी लाइन में लगें हैं ,
जीने के लिए बहुत सी लाइनों में लगना अब जरुरी है ।
एक पंखा था मेरा दोस्त …आवाज़ कर कर के मेरे साथ बातें करता था ,
पर अब सर्दियाँ आ गईं है ..वो शीतनिद्रा को प्राप्त हो चुका है ।
कुछ महीने मैं भी मौन रहूं …बाद मैं हम दोनों स्वेटर से बाहर निकल कर ,
ढेर सारा गपियायेंगे !!!!