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27 Sep 2024 · 1 min read

तन्हा

इस शहर की गलियों में जिधर देखो हुजूम है ,
इस इन्सानी सैलाब में अजब दीनी जुनूँ है ,

हर शख़्स लगता है बे-परवा दुनिया से ,
अपने में मगन बे-ख़ुद सा किसी ख़्वाब में.,

मै अपने आप को सबसे अलग – थलग पाता हूँ ,

ना ही मुझमें वो जुनूँ तारी है ,
ना मेरी ख़ुदी पे ये पस-मंज़र भारी है ,

शायद इसलिए मै अपने आप को तन्हा पाता हूँ ,
कुछ इसी कश्मकश में रह दिन गुज़ारता हूँ।

Language: Hindi
65 Views
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