तन्हा सी तन्हाई
^^^ तन्हा सी तन्हाई ***
आ गई आ गई आ गई
सुनहरी सी याद आ गई
छा गई छा गई छा गई
तन्हा सी तन्हाई छा गई
यादों का झरोखा आता है
दिल को बड़ा तड़फाता हैं
भा गई भा गई भा गई
सूरत महबूब की भा गई
ऊँची चाहे होती दुकान है
फीका ही होता पकवान है
खा गई खा गई खा गई
शेखी मुकाम को खा गई
मिलने की चाह है जागती
सीमा पाँवों को है बांधती
हट गई हट गई हट गई
बाँधी गई बंदिशे हैं हट गई
मनसीरत दिल से चाहता
रहता है पीछे पीछे भागता
छट गई छट गई छट गई
छाई काली घटा झट गई
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल