तन्हाई
कैसी तन्हाई बसी है
इस भरी महफिल में
लबों पर मुस्कान हैl
दर्द भरा है दिल में
बतलाता नहीं दर्द इंसान
हंस कर दुनिया रुलाएगी
अपने बहते अश्कों से वह
बताने का मूल चुकाएगी
कैसी तन्हाई बसी है
इस भरी महफिल में
जख्म भरा दिल है अंदर
धूल सके न जिसे समंदर
मात देकर इन जख्मों को
बनकर घूम रहा सिकंदर
कैसी तन्हाई बसी है
इस भरी महफिल में
जीवन जीना आसान नहीं है
बिन महफिल पहचान नहीं है
सोच समझ कर जीने में
अपना कोई नुकसान नहीं है
कैसी तन्हाई बसी है
इस भरी महफिल में*****
रीता यादव