“तन्हाई”
तन्हाई मतलब अकेलापन, जब कोई अपना आसपास न हो तब हम तन्हाई में जीते हैं। कभी पूरा परिवार साथ होने पर भी हम खुद को तन्हा पाते हैं। यानि हम दो तरह की तन्हाई से जीवन में दो-चार होते है। एक परिस्थिति जनक होती है,एक मनःस्थिति पर निर्भर होती है।
इसका कारण है अपनों द्वारा उपेक्षा । चाहे वो प्रेमी प्रेमिका की बेवफाई हो या उससे अत्यधिक लगाव जो उसके कारण दूर चले जाने पर हमें अनुभव होता है। जो भी हो तन्हाई में हम खुश नहीं रह पाते। जिन्दगी में सभी को किसी का साथ तो चाहिए ही।
लेकिन कभी-कभी हमें तन्हाई की तलाश रहती है, मन के सुकून के लिए, अपनों के बुरे व्यवहार के कारण या दुनिया दारी के कर्तव्य निभाते निभाते थक जाने के कारण। पर अधिक समय तक नहीं।
तन्हाई मौत सी लगती है,
मुझे ये सौत सी लगती है।
भाता नहीं महल-दो महल कभी,
अभागी कोई औत सी लगती है।
स्वरचित-
गोदाम्बरी नेगी