तन्हाई
तन्हाई
तन्हाइयो में ये पूरानी याद बहुत सताती है,
रोकना चाहे दिल पर दिल को याद बहुत आती है ।
एक पुरानी किताब कि तरह हाल हो गया है की ,
किसी के हाथों को मेरे पन्ने पलटने की चिंता बड़ी सताती है ।
रात काली नागिन सी है ओर दिन ज्वाला हो गया है,
तन्हाई में उड़ता कपास का फूल की तरह में हो गया हूं।
कोई बात करने को नही है , हवा से बात करता ,
हरकही जाता ,रुकता ,गिरता और सहता में लग रहा हु ।
चीरती है जिगर को ये तन्हाई , पर इस दर्द का नाम क्या है ,
इस से महोताज़ हो गया हूं।
दोस्ती के जाल में फंसा मकड़ा सा लग रहा हु,
लोगो की बातों को पीता में जा रहा हु।
तन्हाई की ये तसवीर कब मिटेगी सोचता हूं ,
क्यों दूरियां इतनी हुई ये सोचता हूं ,
पर मेरी बात रखने भी की तो जगह नही मेरी अकेलेपन की महफ़िल में,
अब क्या कहू क्या क्या में सोचता हूं ।