****तन्हाई मार गई****
निकले हम घर से दूर यूँ
कुछ कामकाज की तलाश में
अपनो से जब दूर हो गये
हमको तन्हाई मार गई।
था बड़ा शहर सफर भी बड़ा
कोई न दिखता अपना खड़ा
मजमा लगा था लोगो का
भीतर तन्हाई मार गई।
उत्सव,त्यौहार हुये सूने
बन गये मानव कुछ खिलौने
मशीनों सी हालत आज हुई
दिल को तन्हाई मार गई ।
भीड़ बहुत है तेरे शहर में
फिर भी बैठा हर जन अकेले
दुनिया दिल की अब हार गई
हमको तन्हाई मार गई।
चीखते बड़े जोर शोर से
फिर भी हर शख्स बहरा है
कहीं सन्नाटा, कहीं खामोशी
तो कहीं तन्हाई मार गई ।
✍️”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक