तन्हाई…… कविता विरह की
तन्हाई…… कविता विरह की
तन्हाई मे
निश्चुप निःशब्द लम्हों में
गौर से सुना तो
लिपटते, बलखाते
झुंड अल्फाजों के
बुदबुदाने लेगे
जब शब्द मन में
तब होती कविता
विरह की …………..
एक पल के लिए सही
जहां कंही भी हो तुम
आज रात,
छत पर आना
चाँद देखने
हम भी देखेगें
चाँद में तुम्हारा अस्क़
आईने सा …..
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