तन्हाईयों का बाजार
तन्हाईयों का बाजार
लगाती हैं तुम्हारी यादें
हर शाम ढले……..
कभी आओ ना तुम भी….
तुम्हारी.. खुशबूओं से महकता इत्र…
तुम्हारी जादुई हसी……से छनकती पायल…
तुम्हारी वो सिन्दूरी बिदियाँ…
जिसे कभी टाँका था..
चूम कर मेरे माथे पर…
तुम्हारी दी हुई होंठों की सुर्ख गुलाबी हँसी…..
वो कंगन में खनकती खुशी….
सब है इस बाजार में… इन्हें…
बेमोल बेच दूँगी तुम्हें….
इक बार तो आओ ना अपनी अमानते…
छूकर फिर इनमें जान भर दो ना… सब सूनी… तुम बिन….
तुम्हारी राह इकटक ताकती हैं ..लगा…. हर शाम तुम्हारी यादों का बाजार….
इक बार आओ ना कान्हा…. नटखट.. छलिया… तुम सुन रहे हो ना…..
लगाकर बैठी हूँ तुम्हारी यादों का बाजार.. ..फिर शाम ढले….
किरण मिश्रा
13.4.2017