तन्हाइयों में भी नहीं तन्हा रहा हूं मै
तन्हाइयों में भी नहीं तन्हा रहा हूं मैं।
सब भूलकर इकवार जो खुद से मिला हूं मै।।
मिलता नहीं, दिखता नहीं,सुनता नहीं फिर भी।
हर एक चेहरे मे तुझे ही खोजता हूं मै।।
अब तो महकता तन बदन हर ओर खुशबू है।
मिलकर तुझी से फूल जैसा खिल गया हूं मै।।
जीता रहा मरकर यहां तेरे लिए ही तो।
तेरा नहीं गर तो बता फिर और क्या हूं मैं।।
इस कामयाबी के लिए सबकुछ किया मैंने।
छाले बचे हैं पैर में इतना चला हूं मैं।।
जब से गया है तू कभी लौटा नहीं है पर।
दिल के लिए फिर भी अभी समझा रहा हूं मै।।
कवि गोपाल पाठक (कृष्णा)
बरेली, उप्र