तन्हाइयाँ
देखिये रोई बहुत शहनाइयाँ
बहुत तड़पाएगी ये रुसवाइयाँ।
नींद रातों को न अब मिलती गले
आग दिल में लगा रही पुरवाइयाँ।
सुबह की जो किरण पहली देख ली
याद तेरी आ गयी परछाइयाँ।
चाँद गुम है और तारे रो रहे
कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयाँ।
प्यार की तेरे कई साक्षी यहां
ये दिलाते हैं हमदम गवाहियां।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना