तन्हाँ-तन्हाँ सफ़र
तन्हाँ-तन्हाँ सफर डराता है हमें
बिन तुम्हारे कुछ न भाता है हमें
तन्हाँ-तन्हाँ सफ़र………………
यूँ तो पहले भी हम अकेले थे
अब अकेले न चैन आता है हमें
तन्हाँ-तन्हाँ सफ़र………………
ये जिंदगी तुम्हारी अमानत है
तन्हाँ दिल बस ये बताता है हमें
तन्हाँ-तन्हाँ सफ़र………………
क्यों खफ़ा हो ये बताते जरा
बिन कहे जाना रूलाता है हमें
तन्हाँ-तन्हाँ सफ़र……………..
‘विनोद’ कैसे ये भूले हो तुम
थे हमसफ़र ये याद आता है हमे
तन्हाँ-तन्हाँ सफ़र………………
स्वरचित
( विनोद चौहान )