तनहा – तनहा रहता हूँ
लोग समझते खुश हूं मैं ,पर तनहा तनहा रहता हूँ।
बेचैनियो को साथ लिए ,अपनी यादों में बहता हूँ।
दिन ऐसे न रहेंगे कट जाएंगे थोड़ा सा सब्र तो कर,
जो कहते आया हूँ हरदम बस आज वही मैं कहता हूँ।
लोग समझते खुश हूं मैं ,पर तनहा तनहा रहता हूँ।
दिन ऐसे ही गुजरे जाते हैं ,पर कुछ भी तो साथ नहीं।
कोशिश की, कर ही तो रहा हूँ ,आया कुछ भी हाथ नहीं।
खुद से किया वादा टूटता है जब ,खुद के ताने सहता हूँ।
लोग समझते खुश हूं मैं ,पर तनहा तनहा रहता हूँ।
रातें अक्सर कट जाती हैं ,अधूरे से कुछ ख्वाब लिए।
मैं बेचने को जगता रहता हूँ ,जीवन की खुली किताब लिए।
कुछ भी तो बस में नही है पर ,मैं ही मेरा महता हूँ।
लोग समझते खुश हूं मैं ,पर तनहा तनहा रहता हूँ।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी