तनहाई
तन्हाइयों की ख्वाहिश में हम चल पड़े हैं,
हमारी बेबसी तो देखो तनहाइयां भी हमसे दामन चुराने लगी हैं ।
यह भी हमें देख कर मुस्कुराने लगी हैं ,
चाहते , उम्मीदें अक्सर टूट जाया करती है,
लोग कहते हैं तनहाइयां ही साथ निभाया करती हैं।
तन्हाइयों के दामन में मुंह छुपा कर जी भर के रोना चाहा तो,
खुशियों ने आकर रोक दिया,
जब खुशियों के साथ दो कदम आगे बढ़े तो ग़मों ने फिर से दामन भीगोना शुरू कर दिया।
क्यों हर बार सपने हमारे टूट कर बिखर जाते हैं,
क्यों भीड़ में भी हम रहकर तन्हा रह जाते हैं ।
चाहते,उम्मीदें ,सपने यह सब बेकार की चीजें हैं इन्हें छोड़ कर देखो सामने खुशियों के मेले हैं।