तन,मनजन
दोहा छंद
प्रदत शब्द तन,मन,जन ।
तन उजला मन स्याह हो ,सो जन सिंह समान।
दीन-हीन देखे नहीं,खाए काल समान।।
तन धोए शशि कौमुदी ,मन चंचल सी धार।
जन-जन नैन समा रही, चन्द्र प्रभा सी नार।।
तन लचकत सी डाल है,मन अति शोख समीर।।
मुख पर कुंतल जाल है, जन होते देख अधीर।।
ललिता कश्यप बिलासपुर हि०प्र०