तकनीक का दुरुपयोग गलत
आज कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जिसमें तकनीकी सोच के बिना काम हो सके। इस लिहाज से तकनीक का इस्तेमाल जरूरी हो गया है। इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि तकनीक के इस्तेमाल का नजरिया सकारात्मक होना चाहिए।
वह वक्त और था जब सोशल मीडिया स्वच्छ विचारों के आदान-प्रदान और दिलों को जोड़ने के काम आता था। इसके उलट आज हालात यह हैं कि यह माध्यम अब एक-दूसरे पर छींटाकशी और बुराइयां फैलाने का प्लेटफार्म साबित हो रहा है। सोशल साइटों पर लोग सांप्रदायिकता को भ्ीा बढ़ावा देने से बाज नहीं आ रहे हैं। अक्सर ऐसे मामलों में आपसी तनाव और कानूनी कार्रवाइयां भी सामने आती रहती हैं। आमतौर पर युवा नेट और मोबाइल का इस्तेमाल सिर्फ मौज-मस्ती के लिए ही कर रहे हैं। यह दायरा सिर्फ निठल्ला चिंतन तक सीमित होकर रह गया है।
ऐसे यूजर्स की संख्या पांच से 10 फीसद ही होगी जो नेट के जरिए अपने जरूरी कामों को अंजाम देते हों। मिसाल के तौर पर ई लेन-देन, अपना या परिवार वालों का मोबाइल रिचार्ज, घर का डिश रीचार्ज, बिजली बिल का भुगतान, बच्चों की फीस, गैस, गृह कर, वाटर बिल भुगतान, रेल-बस टिकट, किफायती खरीदारी या ऐसे ही अन्य काम। इन सारे कामों के लिए हमें प्रोफेशनल के पास जाना पड़ता है। अफसोस तो तब होता है जब वे लोग दूसरों का सहारा लेते हैं जिनके पास हरदम इंटरनेट युक्त मोबाइल और लैपटाप रहता है।
इंटरनेट का इस्तेमाल बुरी बात नहीं है लेकिन बेवजह अपनी ऊर्जा को नष्ट करना गलत है। नेट का इस्तेमाल सकारात्मक हो तो ज्यादा बेहतर है। अभी तो यह शुरुआत भर है, आने वाले दिनों में यह समस्या और भी भयंकर रूप धारण कर लेगी। अभी 35 या उससे ज्यादा उम्र वाले तो पुरानी दकियानूसी परंपराओं को निभा रहे हैं, यानी इंटरनेट से दूर हैं। इससे नीचे उम्र वालों पर तो मानो पूरी तरह से अलगवाद और बाजारवाद हावी होता जा रहा है। इस विषय पर बुद्धिजीवी वर्ग को चिंतन-मनन की जरूरत है।
© अरशद रसूल