तकनीकी युग मे स्वयं को यंत्रो से बचाने के उपाय
आधुनिक युग के यंत्रो ने हमे जिस तरह से अपने अधीन कर लिया है। ऐसी स्थिति मे इन यंत्रो से दूरी बनाए रख पाना अपने आप मे एक चुनौती है। जहां एक ओर यह यंत्र वरदान साबित हुए है वही दूसरी ओर अभिशाप बनकर भी उभरे है। उपकरणों के लंबे समय तक निरंतर प्रयोग करने से यह भी देखा गया है कि इनके प्रभाव हमारे सोचने कि शक्ति और शारीरिक गतिविधियों पर नाकारात्मक पड़े है। आधुनिक तकनीक हमारे मस्तिष्क को प्रभावित करने के साथ मस्तिष्क के काम करने के तरीके को भी बदल रही है। दिन प्रतिदिन यंत्रो के जरूरत से अधिक प्रयोग ने हमारी अधिगम क्षमता और ध्यान कि शक्ति को भी क्षीण कर दिया है। इन तकनीक के अपने ऊपर पड़ रहे नकारात्मक प्रभाव को जानते हुए भी हम सब इससे अनभिज्ञ है। इन सबके फलस्वरूप हम सब अपनी इन आदतों से छुटकारा तो पाना चाहते है लेकिन अथक प्रयासो के बावजूद भी यंत्रो के अधिक प्रयोगों से छुटकारा पाना हमारे लिए मुश्किल होता जा रहा है।
अक्सर, यह देखा गया है कि, जिस काम मे हमारी रूचि नहीं होती हम वो कार्य करना कदापि पसंद नहीं करते, जिसके कारण हम अपनी बुरी आदतों का त्याग नहीं कर पाने मे असक्षम होते हैं। और हमारी यह कमजोरी या फिर कहे कि खुद को न पहचान पाना ही हमारी बुरी आदतों को न छोड़ पाने मे एक बाधा बन जाता है।
अगर हम अपनी किसी भी बुरी आदत से छुटकारा पाना चाहते है तो सर्वप्रथम हमे खुद का विश्लेषण करना होगा। यहाँ खुद का विश्लेषण करने से अभिप्राय खुद की पसंद और नापसंद से है। आप हमेशा उस कार्य को प्राथमिकता दीजिए जो आपको सबसे अधिक पसंद है जिसको करने से आप कभी बोर महसूस नहीं करते अर्थात आपका समय कब और कैसे बीत गया आपको खुद भी इसका एहसास नहीं होता।
किसी भी तरह कि बुरी आदतों को छोडने कि शुरुआत मे हमारे आस पास का वातावरण व्यवधान तो डालता ही है तथा साथ मे हमारे दिमाग मे अनेक तरह के नाकारात्मक विचार उत्तपन होना भी सावभाविक है, क्योंकि, बदलाव मे हमेशा समय लगता है। जैसे कोई भी कीमती वस्तु जैसी हम चाहते है एक दिन या कुछ क्षण मे बनकर तैयार नहीं होती उसी तरह हमारी आदतें भी एक या दो दिन मे नहीं बनती बल्कि निरंतर, निश्चित समय मे करते रहने से ही अच्छी आदतों का निर्माण होता है।
भूपेंद्र रावत
05/02/2024