तंद्रा तोड़ दो
सिमट जाया करो, खुद ही खुदी में,
बहती धार मिले या शुष्क धरातल .
कच्छप हो तुम, तैर जाओ जल में,
शुष्क धरातल हो, समाधि हो जाओ.
इंद्रियों सिमट जाओ, श्वेत बगुले में,
भूख लगे चोंच में मछली होगी भोगी,
दंत धरो हर व्यंजन के पकवान होगी.
पंथी हो ,पथिक हो, ध्यानी हो साधो ,
कब तक सोना है, शीत निद्रा तोड़ो .
सरिसृप ने तंद्रा छोड़ी, जागी छिपकली.
धामण अंडे खाती, कम पड़ी लड़कियाँ.
सिमट जाया करो, खुद ही खुद ही में.
सोशल मीडिया नहीं सोड रजाई गद्दा,
लोग करते रहते कॉमेंट कटाक्ष भद्दा .
पल्लू हटा गाती हट गई वस्त्र छोटे मोटे,
व्यर्थ के संघी उठ गे, मारे सरेआम सोटे.
~ महेन्द्र सिंह मनु ~