तंज
तंज
वाणी को अनियंत्रित
अमर्यादित
असभ्य बनाना
पड़ता है।
मस्तिष्क में
किसी के प्रति
नकारात्मक
विचारों का प्रवाह
उफान में जब
होता है,
तब वाणी में
विचारों का
ज्वाला
वाणी से
गुजरते हुए
अन्य के
मस्तिष्क में
प्रवेश करता है
तंज के रूप में।
-आकिब जावेद