तंज़ीम
डॉ अरुण कुमार शास्त्री -एक अबोध बालक- अरुण अतृप्त ।
” तंज़ीम ”
प्रथा से ही प्रगति की दीवार लाँघ कर
प्रशस्ति के नए नए आयाम सर किये जायेंगे ।
जो हार हम न मानें तो सफलता मिलने के सभी सोपान तय किए जाएंगे ।।
हैरत से नहीं देखीये उनको जिन्होंने की है ऊँचाईयाँ जीवन में अपने दम पर ।।
साफ़ साफ़ लिख लीजिये, सिर्फ उनके ही तो नाम स्वर्णाक्षरों से लिखे जायेंगे ।।
मैंने कब कहा कि ये काम आपके लिए बहुत मुश्किल था असम्भव था ।।
सलीके से तरतीब से अजी साहिब एक नेक इंसान बन के तारतम्यता तो निभाइये ।।
प्रथा से ही प्रगति की दीवार लाँघ कर
प्रशस्ति के नए नए आयाम सर किये जायेंगे ।