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6 Dec 2020 · 1 min read

तंग पड़ी क्यों आज जिंदगी

तंग पड़ी क्यूँ आज जिंदगी , क्यूँ शिकायतें मौन खड़ी हैं
भागती दौड़ती फरमाइशें ,फरमाइशों की लिस्ट बड़ी है
फँसी हुई है दलदल में , आवाजें शोर मचाती हैं
कागज के चंद टुकड़ों पर ,खुद को ही जलाती हैं
क्यूँ खून का कतरा- कतरा ,लोगों को खुश करने मे ही जाता है
क्यूँ इंसान जिंदा होकर भी , जिंदा लाशों सा भी बन जाता है
इच्छाओं के नाग यहाँ, फन फैला कर बैठे हैं
डसते हैं मानवता को, मानव जीवन विषधर बन जाता है
द्वेष दवंद की कुटिल नीतियाँ, आपस मे हाहाकार मचाती हैं
प्रेम भाव से भरी भावना, मातम यहाँ मनाती हैं
अंधकार में मौन नृत्य जब, चीखो से गुजरता है
आँखों से निकले आँसू पर तब, सारा जग रोता है
क्यूँ हैं इतनी परिभाषाऐं, ढेरों ठगी सी खुशियों की
क्यूँ निःशब्द हैं चुपचाप पड़ी, रामायण और गीता भी
इस दुनिया मे अब तो ,सबकी मनमानी चलती है
लोगों कि आशाऐं अब तो ,पैरों तले कुचलती है
खामोशी का शमशान यहाँ, बर्बादी के मेले हैं
आज के इस रंगमंच पर पहने ,बर्बरता के चोले हैं
अपने ही रिश्ते, अपने घर आँगन मे सिसकते हैं
टुकड़ा टुकड़ा कर एक ज़मी का, आपस मे ही लड़ते हैं
तंग पड़ी क्यूँ आज जिंदगी , क्यूँ शिकायतें मौन खड़ी हैं
भागती दौड़ती फरमाइशें ,फरमाइशों की लिस्ट बड़ी है

Language: Hindi
2 Likes · 3 Comments · 432 Views
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