तंग अंग देख कर मन मलंग हो गया
तंग अंग देख कर मन मलंग हो गया
****************************
तंग अंग देख कर मन मलंग हो गया,
प्रेम रंग तन – मन मंढ अपंग हो गया।
उचंग से मन मचल उमंग से जा भरा,
प्रीत की रीत जीत कर पतंग हो गया।
हाल देख गात का हिय में तरंग उठी,
रंग रूप देख कर झट दबंग हो गया।
चाल ढाल ताकते भंग सा नशा चढ़ा,
ढंग से बेढंग हो ये मन मृदंग हो गया।
रंग ढंग गये बदल जमीं से कदम उठे,
अंग से अंग मिला कर तंग हो गया।
मतंगिनी लावण्य से लिप्त मनसीरत,
घनी सुरंग में फंस मन भुजंग हो गया।
*****************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)