‘ण’ माने कुच्छ नहीं
पाठशाला में जब जाते थे,
गुरुजी खुब समझाते थे।
गिनती ककहरा का था ठाठ,
पहली कक्षा का यही पाठ।
क से कबूतर, ख से खरगोश,
च से चरखा ज से जोश।
ट से टमाटर ढ से ढक्कन होता है,
पर बच्चों ण से कुछ नहीं होता है।
अगर ण न हो व्यंजन में,
ज्यों कालिमा नहीं अंजन में।
पाणिनि सूत्र रह जाये आधा,
वाक्य हर कदम पाये बाधा।
कैसे लिखेंगे प्रणय निर्णय,
रण क्षण प्रण कण व प्रमाण।
घारण पारण चरण चारण,
कारण मारण या निर्माण।
ण से दो का निर्णय होता,
ण से प्रणय परिणय होता।
ण ही बनाता शब्द ग्रहण,
ण से बनता शरण वरण।
‘णय’ नामक एक बड़ा समन्दर,
बना है ब्रम्हलोक के अंदर।
सुर गण करते हैं स्नान,
णय जलनिधि का बहुत है मान।
रहे अधूरा शिव का सुत्र,
संस्कृत व्याकरण न हो कुत्र।
ण आरम्भित मंत्र जपे जैन,
सुख संपति पाते यश चैन।
णमो अरहंताणं,
णमो सिद्धाणं ।
णमो आइरियाणं,
णमो उवज्झायाणं।
जय णमोकार जय महावीर,
जय जिनेन्द्र हरो मन की पीर।
हैं बसते हर विष्णु कण कण,
ण के बिन न बने नारायण।