ढूढ़ता कौन है जिंदगी को कभी ।
ढूढ़ता कौन है जिंदगी को कभी ।।
वक़्त मिलता नही आदमी को कभी ।।
ज़ख़्म गैरो के नासूर करता रहा ।
चाह इसको नही सादगी को कभी ।।
शौक़ का दे हवाला किया पाप है ।
ढूढ़ पाता नही रोशनी को कभी ।।
चल पड़े है अँधेरा मे सुनसान है ।
प्यार देता नही अज़नबी को कभी ।।
लाख़ महफ़िल सजी दिल के सौदे हुए ।
वो न समझा यहाँ दिल्लगी को कभी ।।
रात लेती रही खुब मज़ा चाँद का ।।
रोशनी न मिली चाँदनी को कभी।।
राम केश मिश्र