ढूॅंढ़ लो
कल क्या होने वाला है, आज में ढूॅंढ़ लो।
इश्क़ कितना है, उसके मिज़ाज़ में ढूॅंढ़ लो।
क्या बेवफ़ाई का मतलब नहीं समझते हो,
जाओ जाकर, उसी दगाबाज़ में ढूॅंढ़ लो।
ये तुम्हारा इश्क़, कितना परवान चढ़ेगा,
मोहब्बत का अंज़ाम, आगाज़ में ढूॅंढ़ लो।
देखना चाहते हो अगर, कमी की कीमत,
तो कहीं जाकर किसी, मोहताज में ढूॅंढ़ लो।
दिल में राज़ छुपाने का तरीक़ा जानना है,
जाओ किसी गूंगे की, आवाज़ में ढूॅंढ़ लो।
शायर के ज़ख्मों को, कुरेदना चाहते हो,
उसकी किसी ग़ज़ल के,अल्फ़ाज़ में ढूॅंढ़ लो।
संजीव सिंह ✍️
(स्वरचित ©️)
नई दिल्ली