ढूंढता फिरू
शब्द शब्द चुनता गया
जिंदगी शब्दहीन हो गई,
ऐसे दृश्य आन पड़े
महफिल गमगीन हो गई।
खुशियों के बाजार में
मुस्कान ढूंढता रहा
औरों के मुहल्लों में,
अपना मकान पूछता रहा
चाहत संजोय रखा था
जो मैने ,आज उदासीन हो गई।
चलचित्रों की जिंदगी जीना मेरी चाह थी
सहसा निकल आया ,
जो शब्द वह हृदय की आह थी
अजगर समय करवट लिया
की जिंदगी छिनभीन हो गई।
कोई लाख संजोय सपने पूरे कितने होते हैं
काली रात में तारे गिनने होते हैं
मोहरा बने है हम ,
वक्त के बाजीगरों का
सब करिश्मा है
उस खेल के जादूगरों का
जिससे प्यार था अबतक
उससे अन बन हो गई।