*ढूंढ लूँगा सखी*
#justareminderekabodhbalak
#drarunkumarshastriblogger
थक गया हूँ बहुत
कुछ -कुछ टूटा भी हूँ
थी करी कोशिश, हजार
बिखरा मगर, बार- बार ।।
क्या करूँ क्या करूँ क्या …. करूँ
ढूंढ लूँगा सखी
तुझको ढूंढ ही लूँगा, मैं एक दिन
तू न देना भुला तू न देना भुला ।।
जो जाऊँ कहीं बीच में ,
तुझसे बिछड़ , तू न देना भुला
मंजिलें तो आती रहेंगी
आसमां भी सर पे रहेगा
धरती के संग संग
तेरा मेरा, वास्ता भी रहेगा ।।
ढूंढ लूँगा सखी
तुझको ढूंढ ही लूँगा,
मैं एक दिन
तू न देना भुला,
तू न देना भुला ।।
थक गया हूँ बहुत
कुछ -कुछ टूटा भी हूँ
थी करी, कोशिश हजार
बिखरा मगर, बार- बार ।।
बिखरा मगर, बार -बार ।।
आईना तो नहीं मैं ,
जो देख लूँ भविष्य को
जी रहा हूँ फिर भी,
इक आस में
वर्तमान ही है बस,
मिरे सामने ।।
आरजू है तुझसे यही
करना इंतजार , करना इंतजार ।।
ढूंढ लूँगा सखी
तुझको ढूंढ ही लूँगा,
मैं एक दिन
तू न देना भुला,
तू न देना भुला ।।
रास्ते मुड़ गए रास्तों से अगर
हम बनाएँगे फिर से,
नई इक डगर
वादा रहा, वादा रहा,
हाँ ये वादा रहा
पर गुजारिश मेरी,
है बस यही
तू न देना भुला,
तू न देना भुला ।।
थक गया हूँ बहुत
कुछ- कुछ टूटा भी हूँ
थी करी कोशिश, हजार
बिखरा मगर, बार बार ।।
क्या करूँ क्या करूँ क्या …. करूँ ।।