ढूंढ रहा हूं घट घट उसको
गुरुवार -दिनांक : २६/१०/२३
#विधा -#गीत
ढूंढ रहा हूं घट -घट उसको
पार न उसका पाया।
ज्ञान हुआ अधकचरा मुझको,
समझ न कुछ भी आया।।
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अब तक नहीं भरी है गठरी
इत -उत भटक रहा हूं।
दो नाॅवों में पांव रखा है,
अध भर लटक रहा हूं। ।
अंधकार का गहन तमस ही
मेरे मन पर छाया।
ढूंढ रहा हूं घट -घट उसको
पार न उसका पाया।।
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घर गृहस्थी के संबंधों में
इतना उलझ गया हूं।
कभी-कभी मुझको लगता है,
बिल्कुल बदल गया हूं।।
सुलझ- सुलझ कर उलझ रहा हूं,
उलझाती है माया।
ढूंढ रहा हूं घट -घट उसको
पार न उसका पाया।।
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मन कहता पंछी बन जाऊं,
दूर देश उड़ आऊं।
दिल कहता मैं रहूं यहीं पर
राम नाम गुण गाऊं।।
अटल कहै अब हाथ जोड़कर,
राम नाम ही भाया।
ढूंढ रहा हूं घट -घट उसको
पार न उसका पाया।।
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अटल मुरादाबादी
९६५०२९११०८